मेरे बाबूजी चाहते हैं कि मैं कोई सरकारी नौकरी करूँ

 मेरे बाबूजी चाहते हैं कि मैं कोई सरकारी नौकरी करूँ


मेरे बाबूजी की बड़ी इच्छा रहती है कि मैं कोई सरकारी नौकरी करूँ।मे रा भी कोई सरकारी बंगला हो, सरकारी गाड़ी हो, सरकारी सुविधाएं हों, ऐसे ही उनकी इच्छा होती है। शायद उनकी इच्छा गलत नहीं है क्योंकि उन्होंने देखा है कि कैसे सरकारी कार्यालयों का चक्कर काटते है और वहाँ पर अधिकांश सरकारी कर्मचारियों, खासकर अधिकारियों का जो रुतबा होता है उनकी मोटरगाड़ी उनके बंगले नौकर चाकर I तो अपने संघर्षों को देखते हुए जिन संघर्षों को पार करते हुए जिन संघर्षों के साथ मुझे आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया, ये सब को देखकर उन्हें लगता है कि मेरा बेटा भी सरकारी नौकरी में हो, उनको ऐसी कुछ सुविधाएँ रहे हैं, उनका भी एक जलवा हो। उन्हें भी लोग एक सरकारी अधिकारी के नाम से सैल्यूट करें, नमस्ते करें।

लेकिन शायद मेरे बाबूजी को सच्चाई बिल्कुल नहीं पता।मैं इस बात को एकदम स्पष्ट कर दूँ कि मुझे कोई भी गिला सिकवा नहीं की। मैं सरकारी नौकरी में नहीं हूँ। बिलकुल ही नहीं है। यह नहीं कि मैं मुझे किसी बात का अफसोस है कि मैं सरकारी नौकरी में नहीं हूँ। हाँ मेरे पास सरकारी गाड़ी, सरकारी कार्यालय, सरकारी नौकर चाकर बिल्कुल नहीं है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं समाज की सेवा नहीं कर पा रहा हूँ। मैं पिछले 24 वर्षों से जो मैं शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहा हूँ, हजारों बच्चों को मैंने पढ़ाया हैं। उनमें से सैकड़ों बच्चे हैं जो आज अपने जीवन में अब बहुत उन्नति किया। कई बच्चे हैं जो करोड़पति हुए, कई बच्चे हैं जो अमेरिका में घर ले लिए अमेरिका में बस गए। कई बच्चे है जो जो करोड़ों रुपए कमाते हैं और समाज में एक अच्छा जीवन यापन करते हैं तो मुझे लगता है यह मेरे लिए सबसे बड़ी सफलता है। मुझे इस बात की बिल्कुल ही अफसोस नहीं है कि मैं यदि सरकारी नौकरी में ही होता तो मैं यह सब कर पाता। असल में हमारा उद्देश्य जरूर होना चाहिए की हम जहाँ पर भी काम करें समाज का, मानव कल्याण, मानव उत्थान का, मानव जाति को शिक्षित करने का, ये हमें सेवा करने का अवसर मिलना चाहिए।और मुझे लगता है कि मैं बखूबी कर रहा हूँ, लेकिन फिर भी अब मेरे बाबूजी अपने जगह सही हैं। उनको लगता है कि अपार पैसे नहीं है और भी काफी कुछ काम मेरा बेटा कर सकता है। मेरे गांव के लोगों को मेरे आसपास के लोगों को मदद कर सकता हूँ। उनको लगता है कि सरकारी नौकरी से जो उन्होंने सुना है, जो उनको दिखता है I  वो तो पढ़े लिखे नहीं हैं, लेकिन पूरी समझदारी है तो उनको लगता है की सरकारी कर्मचारी अधिकारी होने के बाद अपार पैसे होते है, अपार सुविधाएँ होती है, उससे आप अपने रुतबे से, अपनी जान पहचान से लोगों की और मदद कर पाएंगे, और सेवा कर पाएंगे, ऐसा उनका ख्याल है। ऐसा उनको लगता है।

मेरा मानना  बिल्कुल ऐसा नहीं है। मेरे को लगता है कि उनकी इस इच्छा का मैं पालन नहीं कर पाता। कभी कभी मुझे लगता है कि मेरे को होना तो चाहिए क्योंकि उनकी इच्छा भी मेरे जीवन में मायने रखता है तो इसका मतलब यह नहीं कि मैंने कोई सरकारी नौकरी का प्रयास नहीं किया, कई बार प्रयास किया।मैं  यह भी कह सकता हूँ कि शायद मेरे में भी कुछ कमियां रही हो और इस चक्कर से मुझे सरकारी नौकरी पाने में असफलता हासिल हुआ।

लेकिन इस बात की सच्चाई को भी हम अस्वीकार नहीं कर सकते कि कई दफ़े मैंने खासकर उच्च पदों के लिए कम से कम एक दो बार तो मेरा अनुभव ही कहता है कि जान पहचान भी चाहिए। बहुत बड़ा जान पहचान चाहिए। साथ में इतना सुनने को मिलता है कि बड़ा खासा पैसा चाहिए, पहचान भी चाहिए और पैसा भी चाहिए तब आप उच्च पदों में घुसने की कोशिश कर सकते हैं या सोच सकते हैं क्योंकि अब मैं कोई इस स्तर में जब अड़तालीस साल उम्र होने जा रही है तो मैं ये नहीं सोच सकता कि मैं अब एक व्याख्याता या किसी ऐसे ही पद पर सरकारी नौकरी में और मुझे लेंगे भी नहीं क्योंकि उमर अब आगे हो गया। तो मैं अपने स्तर के लिए यदि किसी पद पर जाने का प्रयास करने जाने के बारे में सपना भी देखो तो इतना सुनने को मिलता है कि आपकी यदि कोई जान पहचान नहीं है, अधिकांश समय I ऐसा नहीं बोल रहा हूँ की जीतने भी लोग हैं, वो अपनी योग्यता के अनुसार नहीं चयन हुए हैं। मेरी योग्यता उतनी अच्छी नहीं हो।

यह अलग बात है कि मुझे ये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पे चाहे वो इटली हो, यू के हो, श्री लंका हुआ, मॉरिशस हुआ जैसे जगह में मुझे लेक्चर्स के लिए बुलाते हैं, उनके बोर्ड में मैं सदस्य हूँ फिर भी हो सकता है मेरे में कुछ कमियां हो। भारतीय सिस्टम को देखते हुए और मेरे में कुछ कमियां हैं इसलिए मैं नहीं हो पाता तो ये सच्चाई है।

मैं अपने बाबूजी को नहीं समझा पाता। उनको लगता है की इनको प्रयास करना चाहिए। अलग बात है कि मेरे प्रयास किया, नहीं हुआ। उसमें मेरी गलती हो सकती है, मेरी कमजोरी हो सकती है, लेकिन यह भी सच्चाई है कि जान पहचान और पैसे का भी हम बहुत ज्यादा सुनने को देखते है। कितनी सच्चाई, नहीं मालूम जब मुझे पर्सनली व्यक्तिगत एक दो बार जरूर एहसास हुआ कि पैसे और जान पहचान कर तो जरूर बोलबाला मुझे थोड़ा प्रतीत होते दिखा। फिर भी मुझे किसी भी बात का कोई भी अफसोस नहीं है। मैं इतने प्रसन्नता से अपने जीवन में आगे बढ़ रहा हूँ। रामकृष्ण मिशन विवेकानंद आश्रम के कारण जो कुछ भी हूँ और इसलिए मैं समाज में कुछ जितना मेरे से संभव हो सके, कुछ करने का, वापस करने का निरंतर प्रयास करता रहता हूँ और उस दिशा में थोड़ी बहुत सफलता भी मिलता है तो मुझे लगता है कि इसलिए मुझे प्रसन्न हो रहना चाहिए। प्रसन्न होकर काम करना चाहिए की माँ बाप चाहते हैं की आप लोगों के कुछ काम आप आये लोगों के लिए कुछ कर पाए। अभी भी मेरा परिवार क्योंकि मेरे परिवार में लोग पढ़ लिख नहीं पाए, भाई लोग नहीं पढ़ लिख पाए तो उस चक्कर में भी बहुत परेशानियाँ है। तो जितना संभव हो सके परिवार के लिए, समाज के लिए, समाज में लोग हैं, जिनको बहुत जरूरत है सहायता की, उनके लिए कुछ कर पाता हूँ और करने का निरंतर प्रयास करना, मुझे लगता है इसमें मेरी बड़ी सफलता है।

तो कुल मिलाकर मैं यह कहना चाहूंगा की मेरे बाबूजी का सपना है कि मैं सरकारी नौकरी में रहूं I मैंने प्रयास भी किया, असफल भी हुआ। फिर मुझे ऐसा प्रतीत भी हुआ कि ना तो मेरे पास इतने पैसे है, ना मेरी कोई जान पहचान है। गांव का रहने वाला हूँ, कोई शहरों में पहचान नहीं, कोई नेता, मंत्री मेरे पहचान के नहीं। किसी नेता मंत्री को जानता हूँ या कुछ भी काम भी आया हूँ, लेकिन जब मुझे बदले में कुछ या तो माँगने की इच्छा नहीं होती या मेरे को  जान पहचान उतनी पहुँच नहीं है की मैं उच्च स्तर के किसी पद पर जाने का सोच भी सको। निरंतर प्रयास जारी हो सकता है। कभी ऐसे सुधार लाते लाते। सभी योग्यता तो है ही लेकिन सुधार लाते लाते मैं अपने में इतना सुधार लाता हूँ कि हो सकता है किसी दिन मेरे बाबूजी का सपना पूरा हो सके ।

हालांकि इसके बारे में मैं कुछ भी नहीं कह सकता, लेकिन इस बात का थोड़ा भी मलाल नहीं है। मन में थोड़ा भी अफसोस नहीं है कि मैं सरकारी नौकरी में नहीं हूँ और कुछ कार्य में संपादित नहीं कर पा रहा हूँ। मुझे लगा कि इस विचारों को, खासकर बाबूजी के सपनों के बारे में मैं जरूर इसको साझा करूँ लिखूं और और इसलिए मेरा मन किया की इस चीजों को अपने ब्लॉग के माध्यम से मैं अपना विचार व्यक्त करूँ I

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