छत्तीसगढ़ के गुरतुर बोली

 छत्तीसगढ़ के गुरतुर बोली


छत्तीसगढ़ी जैसे गुरतुर बोली.

अब्बड़ मिठास अउ हंसी ठिठोली..

बने बने हस अउ तोर पांव परत होँ, जैसे सुघर बोली...


कैसे लागत हे पुछे ले बने नई लागत हे.

कैसे हाबस पुछे ले सब बने बने..
मोला पहचाने का पुछे ले,     भुलावाथों थोर्किन याद करन  दे...
छत्तीसगढ़ी सब्बे सब्द ह                                                                    अब्बड़ भाथे....

पताल के चटनी अउ बासी के स्वाद, कहीं नाइ मिले चरोटा भाजी के साग.
गावं में जम्मो झन रिश्तेदार, जाने माने एक्के हे परिवार.. 
कोटवार के एक्के हांका में सब्बो झन इकट्ठा हो जथे, मिल जुलके करथें सोच-बिचार ...

घर घर मितान अउ मितानिन का सियान अउ का सियानिन.
नाम नई ले पड़े, बस पंडित और पंडिताइन..
बैगा-बैगिन,कोटवार-कोटवारिन, किसान-किसानिन...
है न अब्बड़ सुग्घर ये बोली, माँ ल बोलथन महतारिन....
मीठ मीठ अउ गुरतुर लागथे छत्तीसगढ़ के जबानी.....
ममा दाई-अउ-बबा, अब हो गेहे ओकर जगा नाना अउ नानी......

जीजा ल भांटो और बुआ ल फुफु दीदी.
लड़का लड़की ल बाबू नोनी, प्याज ल गोंदली अउ रुई ल पोनी..
सुवा गीत जैसे गुरतुर अउ गम्मत नाचा के हंसी ठिठोली...
पूरा संसार ल खोज ले, ऐसी अउ कहीं  नहीं होही...

कमरा ल बोलते खोली, 
एकरे सेती गुरतुर हे छत्तीसगढ़ के बोली.................


अभी आगे अउ लिखहूं...........








Comments

Popular posts from this blog

Mapping Learning Outcomes with Learning Objectives for Achieving Real Impact of Outcome Based Education (OBE) in Myanmar

Why is 5th September important for me?