शिक्षा का गुणवत्ता निर्धारण एक निरंतर प्रक्रिया है, न की एक घटना
शिक्षा का गुणवत्ता निर्धारण एक निरंतर प्रक्रिया है, न की एक घटना
(डॉ जी आर सिन्हा, प्रोफेसर म्यांमार इंस्टिट्यूट ऑफ़ इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी मांडले म्यांमार)
शिक्षा या शिक्षण संस्थानों में गुणवत्ता का महत्त्व समझने की जरुरत है।
हमें यह जानने की जरुरत है की दुनिया की श्रेष्ठ २० या ३० शिक्षण संस्थानों या विश्वविद्यालयों में
हमारा कोई स्थान क्यों नहीं है, या फिर हम इसे छत्तीसगढ़ के सन्दर्भ में देखें तो यहां पर भी ऐसे संस्थानों का क्यों आभाव है जो दुनिया के उच्चतम १०० संसथानो में अपना नाम अंकित करा सके।
यदि हम यह पता लगाएं की विश्व के श्रेष्ट शिक्षण संस्थानों का अध्ययन करें तो हमें पता चलेगा की इनमे से अधिकतर निजी संस्थाएं है, इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है की दुनिया में श्रेष्ठम होने के लिए केवल सरकारी संसथान होना जरुरी है।
आप ऍम आई टी (अमेरिका) या हारवर्ड
को देख लीजिये जो विश्व में
पहला एवं दूसरा स्थान रखते हैं, निजी संस्थाएं हैं।
और इसीलिए यह जानना अत्यंत आवश्यक है की ऐसी विश्वविद्यालयों एवं संस्थानो में ऐसी क्या बात है जो इन्हे विश्व गुरु बनाती हैं।
इसका केवल एवं केवल एक ही कारण है और वह है गुणवत्ता का निरंतर निर्धारण, अनुकरण, अध्ययन एवं व्यवहार है।
इस सच्चाई से हम मुँह नहीं मोड़ सकते की जब अधिकाँश यूनिवर्सिटी में या शिक्षण संस्थान में कोई टीम गुणवत्ता का मूल्याङ्कन करने आती हैं, तो जिस संस्थानों में टीम का निरिक्षण होता है वहां पर करीब एक महीने पूर्व से जैसे की
त्यौहार का माहौल हो जाता है।
गुणवत्ता के मानकों को पूरा करने के लिए भागदौड़ मच जाती है, कागज तैयार किये जाते हैं।
इसका मतलब यह हुआ की गुणवत्ता के निर्धारण एवं मूल्याङ्कन को एक घटना के तरह देखा जाता है न की निरंतर प्रक्रिया के रूप में उसका व्यवहार में लाना।
वास्तव में गुणवत्ता एक साधारण प्रक्रिया है जिसका अनुसरण करने पर हमें कोई अनावश्यक कागजी कार्य करने की जरुरत नहीं है। आईये देखें की दुनिया के २० शीर्षतम संस्थाएं कैसे अपने शैक्षणिक एवं शोध के गुणवत्ता को बनाये रखते हैं:
§ लर्निंग एनवायरनमेंट (सिखने का माहौल) ऐसा होना चाहिए की विद्यार्थी उसमे रूचि ले सके।
अकादमिक भाग के अलावा, प्रॉब्लम बेस्ड लर्निंग के अवसर, व्यावहारिक शिक्षा, फ्लेक्सिबल सिलेबस (पाठ्यक्रम) ऐसे और भी कई
फैक्टर्स हैं जो अच्छे वातावरण निर्मित करने में सहायक होते हैं।
हरेक विद्यार्थयों को संस्थान के गुणवत्ता निर्धारण में,
विज़न एवं मिशन स्टेटमेंट में, तथा सभी गतिविधियों में सुझाव देने का अवसर मिलना चाहिए।
शैक्षणिक के अलावा शोध पर जोर देने के लिए शोध का माहौल तैयार करना होगा।
§ लर्नर सेंट्रिक (विद्यार्थी केंद्रित) शिक्षा की जरुरत है जो केवल कागज तक सिमित न हो बल्कि स्टूडेंट्स के होलिस्टिक डेवलपमेंट में सहयोग कर सके।
§ कंटेंट क्रिएशन पर बहुत कम लोग ध्यान देते हैं।
यदि हम शीर्ष संस्थानों को देखें तो पाएंगे की उनका खुद का कंटेंट पोर्टल (स्टडी मैटेरियल्स) होता है और वह भी उच्च क्वालिटी का। एम् आई टी अमेरिका को देखिये, उनका
सभी विषयों में आपको कंटेंट्स खुद मिलेंगे।
वहां पर के विद्यार्थियों के कंटेंट्स को विश्व के सभी लोग रेफेर करते हैं।
ऐसा प्रयास करना पड़ेगा वह भी ईमानदारी से एवं ऐसा करने के लिए छात्रों तथा शिक्षकों दोनों को प्रेरित करने की जरुरत है, उन्हें संसाधन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी संस्थानों का है।
§ हरेक कार्य के लिए प्रोसेस होना चाहिए, ऐसा नहीं की जब निरिक्षण होना है तब प्रोसेस एवं सब कुछ तैयार किया जाये, सच्चाई यह है की बहुत से संस्थानों में ये होता है।
उसके बजाय यदि हरेक चीजों को प्रक्रिया से जोड़ कर निरंतर करने के लिए प्रयास किया जाये तो इसका परिणाम अत्यंत उत्तम होगा।
§ लर्निंग आउटकम की हर तरफ बात होती है और बड़ी बड़ी बातें की जाती है पर जमीनी स्तर पर सब खोखला।
आउटकम को कैसे मूल्याङ्कन कर रहे हैं, किन पैरामीटर्स में कर रहे हैं, किन लोगों को शामिल किया जा रहा है, इत्यादि।
यह सब आउटकम को अस्सेस्स करने में सहायक होता है।
लर्निंग आउटकम को शिक्षण कार्य के हरेक भाग से जोड़ना होगा, की यदि स्टूडेंट यह कार्य करता है तू उसे किया फायदा हो रहा है, उसमे कोई सकारात्मक परिवर्तन हो रहा है की नहीं.. यह सब एक निरंतर तथा प्रक्रिया बद्ध होना चाहिए।
इस लेख का उदेश्य यह कदापि नहीं है की हमारे यहां अच्छे शिक्षण संस्थाओं की कोई कमी है , जरुरत इस बात की है की हम कैसे गुणवत्ता को अपने नियमित एक्टिविटीज में अनिवार्य हिस्सा बना लें।
हमारे आई आई टी और कुछ आई आई आई टी कोई किसी से कम नहीं है परन्तु छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में भी अपार संभावनाओं के होते हुए हम शीर्ष स्थानों में जगह नहीं बना पते।
हमें इस पर गहन चिंतन करने की जरुरत है और
उच्चतम संस्थानों का अध्ययन करके उनका अनुसरण करने की जरुरत है।
हम कागजी गुणवत्ता का क्लेम करके अपने आप को संतुष्ट तो कर सकते हैं परन्तु देश एवं विश्व में स्थान प्राप्त करने के लिए गुणवत्ता का आकलन खुद करने की जरुरत है तथा उसे निरंतर अच्छा करने के लिए जमीन पर कार्य करना चाहिए। जो समिति निरिक्षण की
लिए आती हैं, उन्हें तो बिना कुछ कागज देखे, इंफ्रास्ट्रक्चर को देखकर एवं स्टूडेंट्स
तथा शिक्षकों से बात करके ही पता चल जाना चाहिए
की वास्तव में उस संस्था में गुणवत्ता पूरक शिक्षा प्रदान की जा रही की नहीं।
A true and powerful thoughts Sir. We really need to brood over it.
ReplyDeleteThanks, hope we can work on OBE and assessment as joint research. If interested, do write to me at drgrsinha@ieee.org
DeleteSargarbhit!!
ReplyDeleteThanks!
DeleteTrue words...
ReplyDeleteWe need to practice this together.
DeleteThanks!
DeleteVery much true for current world scenario.
ReplyDeleteNadeem
True Nadeem, hope we can do a lot in this field too!
DeleteWell said. Our teaching methods are not change in last 20 to 20 years and technology changes from 2g to 5g
ReplyDeleteAgreed! Though, teaching methods have changed BUT assessment has to be revisited honestly.
DeleteVery thoughtful sir
ReplyDeleteThanks for sharing your blog on a subject of contemporary interest. To excel , we require honesty of purpose. There is hardly any emphasis on research and most of those who matter, don't wish to rock the boat.
ReplyDeleteThanks for a timely & thought provoking piece on ailments afflicting our higher education.
Dr. Sinha,
DeleteI hope you agree with my views above. We can interact during your visit to Bhilai
G. Ojha
Respected Sir, I agree with you! Hope to have interaction with you and have some brainstorms (writing as well as discussion) in my next visit to India during Deepawali!
DeleteThanks Indeed!
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